आईएसएफटी-2024 के उद्घाटन सत्र में सतत विकास लक्ष्यों के प्रति जागरुकता बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया

NaradSandesh।।फरीदाबाद,05 जनवरी,2024:जे.सी.बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, वाईएमसीए फरीदाबाद द्वारा फ्यूजन आफ साईंस एंड टैक्नाॅलोजी पर आयोजित 10वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (आईएसएफटी-2024) तथा ‘बेहतर ग्रह के लिए सतत प्रौद्योगिकीः चुनौतियां और 2050 के लिए हमारी तैयारी’ विषय पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आज शुभारंभ हुआ। आईएसएफटी-2024 सम्मेलन मुख्य रूप से सतत समाधानों की क्षमता और भावी चुनौतियों से निपटने पर केंद्रित है। सम्मेलन में भारत और विदेश से 250 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं, जिनमें से लगभग 30 प्रतिनिधि अमेरिका, दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, इटली, जापान, ईरान, जर्मनी, पुर्तगाल और ब्राजील जैसे देशों से हैं।

सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ के कुलपति प्रोफेसर टंकेश्वर कुमार मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता रहे तथा डाइकिन इंडिया के प्रबंध निदेशक और सीईओ श्री कंवल जीत जावा सम्मानित अतिथि रहे। सत्र की अध्यक्षता जे.सी. बोस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुशील कुमार तोमर ने की।

प्रो. टंकेश्वर कुमार ने मुख्य भाषण में सतत विकास के लिए अपनाए गए 17 सतत विकास लक्ष्यों और 2030 के एजेंडे के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर बल दिया और 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से 50 प्रतिशत ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लक्ष्य के साथ सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बेशक हम इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ रहे है लेकिन आॅटो उद्योग का भविष्य हाइड्रोजन से चलने वाले वाहन होंगे जोकि इलेक्ट्रिक वाहनों की तुलना में ज्यादा पर्यावरण मैत्री है। विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के बीच अटूट बंधन पर बल देते हुए उन्होंने सार्थक तकनीकी विकास के लिए टेक्नोक्रेट्स को विज्ञान के बुनियादी सिद्धांतों को समझने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

डाइकिन इंडिया के प्रबंध निदेशक और सीईओ श्री कंवल जीत जावा, जो विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र रहे हैं, ने भी सम्मेलन को संबोधित किया तथा हरित प्रौद्योगिकी की दिशा में डाइकिन की पर्यावरण हितैषी पहल को साझा किया। उन्होंने कहा कि अपने पर्यावरण विजन 2050 के हिस्से के रूप में डाइकिन समूह की 2050 तक अपनी सभी गतिविधियों में कार्बन-तटस्थ बनने की महत्वाकांक्षी योजना है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने और सतत भविष्य के लिए नवीनतम रुझानों, चुनौतियों और अवसरों पर ज्ञान और विचारों का आदान-प्रदान के लिए शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और छात्रों को मंच प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालय के प्रयासों की सराहना की। 

अपने अध्यक्षीय भाषण में कुलपति प्रो. सुशील कुमार तोमर ने विश्वविद्यालय के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने अनुसंधान एवं नवाचार को समाज से जोड़ते हुए कहा कि सतत आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका महत्वूपर्ण है। उन्होंने कहा कि जे.सी. बोस विश्वविद्यालय नवाचार, अंतःविषय अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीयकरण को केन्द्र में रखते हुए एक अनुसंधान विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हो रहा है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का नाम महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस के नाम पर है, जो अपने अंतःविषय शोध के लिए जाने जाते है। उन्होंने आशा जताई कि सम्मेलन के दौरान होने वाले विचार-विमर्श जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्या के समाधान तथा पर्यावरण अनुकूलित प्रौद्योगिकीय विकास को बढ़ावा देने में मददगार होंगे।

इससे पहले, कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई, जिसके बाद सम्मेलन के संयोजक प्रो. विक्रम सिंह ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने बताया कि सम्मेलन के दौरान 10 तकनीकी सत्र, चार पूर्ण सत्र और एक पोस्टर सत्र सहित 15 सत्र होंगे, जिसमें भारत और विदेश के शोधकर्ताओं द्वारा लिखित लगभग 220 शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे। दो दिवसीय सम्मेलन में लगभग 300 प्रतिभागियों के भाग लेने की उम्मीद है। सम्मेलन में 8 देशों और भारत के 21 राज्यों से प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं। इसके बाद, आईएसएफटी-2024 के मेंटर प्रो. नवीन कुमार ने सम्मेलन के विषय-वस्तु के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस वर्ष सम्मेलन में एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला भी शामिल है। यह विकसित भारत 2047 एजेंडे पर केंद्रित कार्यशाला है। उद्घाटन सत्र को आरएमयूटी, थाईलैंड से डॉ. वारुनी श्रीसॉन्गक्रम, अमेरिका की यूनाइटेड स्टेट्स एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी से लेक जी कडेली, क्वाजुलु-नटाल विश्वविद्यालय, दक्षिण अफ्रीका से प्रो. श्रीकांत बी जोनलागड्डा ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की एलुमनी एसोसिएशन वाईसीएमए माॅब के अध्यक्ष सुखदेव सिंह भी उपस्थित रहे।

 आरएमयूटी, थाईलैंड से डॉ. वारुनी श्रीसॉन्गक्रम, अमसंयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी, यूएसए से श्री लेक जी कडेली और दक्षिण अफ्रीका के क्वाजुलु-नटाल विश्वविद्यालय से प्रोफेसर श्रीकांत बी जोनलागड्डा ने भी आईएसएफटी में अपने विचार और अनुभव साझा किए। इस अवसर पर सम्मेलन की कार्यवाही एवं स्मारिका का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम के अंत में प्रो. मुनीश वशिष्ठ ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया।

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